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बायकैच (bycatch) क्या होता है और यह क्यों होता है? प्रत्येक वर्ष कितने टन बायकैच पकड़े जाते हैं?

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Muhammad

बायकैच (bycatch) शब्द को उन मछलियों या अन्य जलचर प्रजातियों को संदर्भित करता है, जिन्हें मछुआरे अनजाने में या गलती से पकड़ लेते हैं या वे प्रजातियां जो गलती से मछुआरों के जाल में फंस जाती हैं। बायकैच लक्षित प्रजातियों से आकार, लिंग, परिपक्वता या आयु की दृष्टि से अलग हो सकते हैं। मछली पकड़ने के दौरान, कुछ प्रजातियां गलती से जाल में फंस जाती हैं, जो बाद में जहाज या नाव पर मर जाती हैं। ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओ.ई.सी.डी) के अनुसार, बायकैच "मछलियों की कुल मृत्यु दर" है, जिसमें लक्षित प्रजातियों की संख्या को शामिल नहीं किया जाता है। वर्ष 1970 में, यह घटना व्यापक हो गई, जब प्रशांत महासागर में टूना जाल में जब बड़ी संख्या में डॉल्फिन मछली फंस गईं थी।
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इस घटना का मुख्य कारण मछली पड़ने के आधुनिक और अनुचित उपकरण हैं। यह लक्षित या वांछित प्रजातियों को पकड़ने के बजाय रास्ते में आने वाली हर चीज को पकड़ लेते हैं, जैसे कि डॉल्फिन, कछुए, समुद्री पक्षी और अन्य प्रजातियां। आम तौर पर मछली पकड़ने के तरीकों में लंबी तारें, जाल और गिलनेट शामिल होते हैं, जो बायकैच पकड़ने का कारण बनते हैं। सॉर्डफिश, टूना, हलिबूट जैसी मछलियों को पकड़ने के लिए लंबी तारों का उपयोग किया जाता है। इस तरीके में तारों पर सैकड़ों हुक लगे होते हैं और यदि उन हुकों को कोई समुद्री जानवर निगल लेते हैं तो वह उसकी मृत्यु का कारण बनते हैं। इन लंबी तारों से सबसे ज्यादा कछुए प्रभावित होते हैं। दूसरी ओर, जाल का उपयोग समुद्री कछुओं को पकड़ने के लिए किया जाता है और इससे प्रवाल शैल को काफी नुकसान पहुंचता है। इस तरीके में एक बड़े जाल को नाव के जरिये समुद्र में डालकर खींचा जाता है। गिलनेट छोटे छेद वाले जाल होते हैं, जिन छेदों में से मछलियां जाल के अंदर तो चली जाती है, लेकिन बाहर नहीं निकल पाती हैं।

लगभग सात मिलियन टन मछलियां और अन्य जलचर प्रजातियों को हर साल गलती से पकड़ा जाता है और उन्हें फेंक दिया जाता है। इस कारण से बायकैच एक गंभीर समस्या बन गया है और यह लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए एक खतरा है। कई बार बायकैच की मात्रा लक्षित प्रजातियों की मात्रा से काफी अधिक होता है, जो हमारे पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता है क्योंकि बायकैच के दौरान जिन जानवरों की मृत्यु हो जाती है, उन्हें दोबारा उत्पन्न नहीं किया जा सकता है। दुनिया भर में मत्स्य उद्योग इस घटना को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने मछली पकड़ने के सस्ते और आसान उपकरणों का उपयोग करना शुरु किया है, जिससे गैर लक्षित प्रजातियों को कम संख्या में पकड़ा जाता है। प्रौद्योगिकियों में सभी उन्नति की परवाह किए बिना यह अभी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है।

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प्रत्येक वर्ष 300,000 से अधिक छोटी व्हेल और डॉल्फिन जाल में फंसकर मर जाती हैं। कैलिफोर्निया वेक्यूटा और न्यूजीलैंड की माउ डॉल्फिन जैसी कई प्रजातियों के लुप्त होने की संभावना है। इसी तरह, लॉजरहेड और लेदरबैक जैसे लुप्तप्राय कछुए भी बायकैच का शिकार हो रहे हैं। वर्ष 2007 में, दुनिया को पता चला कि चीन की यांगजे नदी में पाए जाने वाले ताजे पानी के संगमाही (porpoise) आखिरकार कई वर्षों बायकैच का शिकार हुए हैं और अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वे विलुप्त हो गए हैं।

कई संगठन इस समस्या से निपटने के लिए काम कर रहे हैं। मछली पकड़ने के तरीकों में नवाचार किया जा रहा है, जैसे J हुकों की जगह गोलाकार वाले हुक का उपयोग किया जा रहा है, जिसको निगलने की संभावना कम हो गई है। गोलाकार हुकों को इस तरह से बनाया गया है कि यदि कोई समुद्री जानवर उसे निगल लेता है, तो उसके शरीर में आंतरिक रक्त स्राव की संभावना कम होती है। यह जरूरी है कि दुनिया भर के मछुआरे मछली पकड़ने के इन नए तरीकों को अपनाएं, ताकि बायकैच की संभावना को कम किया जा सके। मछली पकड़ते समय लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि यह माना जाता है कि केवल मनोरंजन के लिए मछली पकड़ना भी बायकैच का कारण बनता है।

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