1993 के बेंसन और हेज्स विश्व कप में सबसे पहले खिलाड़ियों ने रंगीन जर्सी पहनी थी, सफेद गेंद और ब्लैक साइट स्क्रीन के साथ कई मैच फल्डलाइट में खेले गए थे। इनमें से कई नियम प्रचलित थे, लेकिन यह पहला ऐसा टूर्नामेंट था, जिसमें इन्हें औपचारिक रुप से एक दिवसीय क्रिकेट में शामिल किया गया था। तब से आई.सी.सी ने एक दिवसीय मैचों के नियमों में कई बदलाव किए हैं।
वर्ष 1992 के विश्वकप की शुरुआत से हुए नियमों में हुए मुख्य बदलावों के इतिहास को नीचे देखा जा सकता है:
फ़ील्डिंग प्रतिबंध:
वर्ष 1992 तक फील्डिंग रेस्ट्रिक्शन के मानक नियम के अनुसार पहले पंद्रह ओवर में केवल दो फिल्डरों को तीस गज के सर्कल के बाहर रखने की अनुमति थी और बाकी शेष ओवरों में पांच फिल्डरों को सर्कल के बाहर रखने की अनुमति थी।
वर्ष 2015 में, नवीनतम नियम ने बैटिंग पावरप्ले को भी खत्म कर दिया गया। अब 41-50 ओवरों में चार फिल्डरों को तीस गज के दायरे से बाहर रखने की अनुमति होती है और पहले पावरप्ले 1-10 ओवरों में केवल 2 फिल्डरों को तीस गज के दायरे से बाहर रखने की अनुमति होती है।
बाउंसर वाला नियम:
वर्ष 1992 के विश्व कप के दौरान, एक दिवसीय मैचों में बाउंसर गेंदें प्रचलित थीं, जहां एक ओवर में केवल एक ही बाउंसर फेंकने की अनुमति थी। लेकिन वर्ष 2012 में हुए नियमों में बदलाव ने एक ओवर में दो बाउंसर फेंकने की अनुमति दी और दो से अधिक बाउंसर करने पर अतिरिक्त रन देने का भी प्रावधान दिया गया। दो से अधिक बाउंसर फेंकने पर उस गेंद को नो बॉल माना जाता है।
इस्तेमाल की गई गेंदें:
पहले, एक दिवसीय मैचों में लाल रंग की गेंद का उपयोग किया जाता था क्योंकि खिलाड़ियों की जर्सी का रंग सफेद होता था। रंगीन जर्सी और फल्डलाइट के कारण सफेद गेंद से खेलना अनिवार्य हो गया क्योंकि फ्लडलाइट और रंगीन जर्सी के कारण लाल गेंद को देखने में काफी मुश्किल होती थी। वर्ष 2011 में, एक नया नियम आया जिसने प्रत्येक पारी में दो गेंदों के उपयोग को अनिवार्य कर दिया।
प्रौद्योगिकी का आगमन- डी.आर.एस:
वर्ष 2011 में पहली बार एक दिवसीय मैचों में डिसीजन रिव्यू सिस्टम या डी.आर.एस का इस्तेमाल किया गया। पहले इसका उपयोग अनिवार्य था और बाद में यह वैकल्पिक हो गया। डी.आर.एस में बॉल-ट्रैकिंग शामिल था, जिसे एल.बी.डब्लयू (LBW) के लिए उपयोग किया जाता था और पहले इसमें स्नीकोमीटर भी था पर बाद में हॉक-आई ने इसकी जगह ले ली। वर्तमान में, एक दिवसीय मैचों में, हर पारी में प्रत्येक टीम को एक रिव्यू दिया जाता है, जो उन्हें प्रत्येक सफल आह्वान की रिव्यू के बाद मिलता है।
बारिश से प्रभावित मैच- डी.एल.एस नियम:
1992 के विश्व कप से पहले, इस नियम के अनुसार यदि मैच के बीच में बारिश होती है तो दूसरी पारी में पहली पारी के रनों को प्रति ओवर के अनुसार कम किया जाता था। लेकिन वर्ष 1992 के विश्वकप में नए नियम के अनुसार यदि किसी मैच की दूसरी पारी में बारिश होती है, तो पहली पारी के कुल स्कोर को दूसरी पारी के सबसे कम रन वाले ओवरों के अनुपात में कम किया जाता है।
फ्रैंक डकवर्थ और टोनी लुईस के रिटायरमेंट के बाद, प्रोफेसर स्टीवन स्टर्न को इस नियम का कस्टोडीअन (अभिरक्षक) बनाया गया और वर्ष 2014 में इसका नाम बदलकर डी.एल.एस रखा गया।