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कठपुतली का खेल क्या है? यह भारतीय संस्कृति से कैसे जुड़ा हुआ है?

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Rashmi

कठपुतली का खेल मूल रूप से कला का एक रूप है, जहां कहानी को प्रदर्शित करने के लिए कागज, कपड़ा या लकड़ी की आकृतियाँ तैयार की जाती हैं जो धागे से संचालित होने वाली कठपुतलियाँ या छाया उत्पन्न करने वाली कठपुतलियाँ हो सकती हैं। ये कठपुतलियाँ वास्तव में कहानी को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से बनायी जाती हैं।

भारत में कठपुतलियों का खेल, पीढ़ी दर पीढ़ी से सांस्कृतिक गतिविधियों का एक हिस्सा रही हैं। आज भी, भारत के हर हिस्से में कठपुतलियाँ हमारे जीवन्त संस्कृति का भाग हैं। कठपुतलियों का खेल प्रायः महाकाव्य, पौराणिक कथाओं एवं प्रसिद्ध कहानियों पर आधारित होती हैं।

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  • कठपुतली: कठपुतली का खेल न केवल भारत में लोकप्रिय हैं, बल्कि दुनिया भर में धागे से संचालित (स्ट्रिंग) कठपुतलियाँ लोकप्रिय हैं उनके मनमोहक प्रदर्शन के लिए। धागे से संचालित कठपुतली खेल का यह रूप सबसे पहले राजस्थान में प्रारम्भ हुआ। कठपुतली खेल का यह रूप सभी अन्य प्रकार के कठपुतलियों के खेलों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। राजस्थान के किसी भी कार्यक्रम, त्योहार, या मेले का यह एक अभिन्न अंग है जिसमें ये विभिन्न किंवदंतियों और लोक कथाओं का वर्णन करते हुए प्रदर्शन करती हैं। राजस्थान के शाही दरबारों में काठपुतली का खेल, मनोरंजन का एक रूप था, जिसे राजाओं से बहुत संरक्षण प्राप्त थे।

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  • गोमबेयट्ट्टा: गोम्बेयट्ट्टा कठपुतली खेल का एक रूप है जो कर्नाटक राज्य के मूल का है। यहां की कठपुतलियाँ, अपने चमकीले रंगों और लचीलेपन के गुणों के कारण, मुख्यतः पशु की त्वचा से बनी होती हैं। कठपुतलियों में प्रयुक्त रंग वनस्पति रंगों से बने होते हैं और ये महान भारतीय महाकाव्यों की कहानियों को प्रदर्शित करती हैं।

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  • थोलू बोम्मालाताः थोलू बोम्मालाता राजस्थान राज्य की अपनी, छाया कठपुतली की परंपरा है। कठपुतली का खेल उन लोगों के समूह द्वारा आयोजित किए जाते हैं जो एक जगह से दूसरे जगह पर घूमते रहते हैं और इन कठपुतलियों के माध्यम से कहानियां कहते हैं। अनेक संगीत वाद्ययंत्र और कई पारंपरिक गीत, इनके प्रदर्शन में परिपूरक होते हैं।

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  • थोलोपावाकूत्हू: कठपुतली का यह रूप केरल में देखने को मिलता है। चर्म निर्मित कठपुतली के इस रूप का प्रदर्शन, मन्दिर में देवी के भक्तों द्वारा काळी देवी को समर्पित करने के लिये होता है। यह ध्यान देना आवश्यक है कि देवी की पूजा का अर्थ है शक्ति की पूजा, जो केरल राज्य में सर्वाधिक प्रचलित है और इसने ही कठपुतली के खेल के इस रूप को बहुत प्रभावित किया है।

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  • बोम्मालतम: बोम्मालतम तमिलनाडु में कठपुतलियों की सबसे पुराने रुपों में से एक है, मुख्यतः कुम्भकोनम, सॉलेम, और तंजौर के क्षेत्रों में। कठपुतलियों के खेल के इस रूप को ज्यादातर मंदिरों में त्योहारों और प्रदर्शनियों के दौरान दिखाया जाता है। बोम्मालतम, स्ट्रिंग कठपुतलियों और छाया कठपुतलियों, दोनों रुपों में उपलब्ध है। इनके प्रदर्शन के विषय और कहानियाँ, प्राचीन भारतीय साहित्य के इर्द गिर्द घूमती हुई कहानियों पर आधारित रहती हैं।
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